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एक चेहरा

एक चेहरा मुझे रोज़ दिखता है    कभी सपनो मे तो कभी अपनो मे कभी अपनी डाइयरी के पन्नो मे तो कभी इन लिखी हुई शायरियो मे एक चेहरा मुझे रोज़ दिखता है|                                                     मोहब्बत को दफ़नाकर, मासूमियत दिखाता है    एक बार नही बार बार रुला कर, हमदर्दी दिखाता है कुछ मीठी यादो के साथ ढेर सा गम दे जाता है यह चेहरा कुछ ख़ास सा है इसमे, वरना आज तक क्यूँ याद आता है यह चेहरा, एक चेहरा मुझे रोज़ दिखता है,  कभी सपनो मे तो कभी अपनो मे|

Childhood Memories

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" I lived my whole childhood in expectation of waking up to a better tomorrow. I thought, somehow everything will change for good. But no miracle happened. In search of PEACE, LOVE, and HAPPINESS (P-L-H), I almost lost my childhood. I still wish if I had a better childhood. I still get nightmares of a lady crying for mercy from her husband and some old lady abused by her own son. I can recall a number of fights between son and father. And few attempts of suicide by few of them. Sorrowful nights used to haunt me. Continous Mental torture led me to end my life but I failed. still, nothing has changed. The way of abusing and torturing woman is same. It has just transferred from one generation to the next generation. I am still searching for the P-L-H. But with maturity, the meaning of P-L-H has changed. I am still running away from my problems. Once one of my friends asked me to stop running away from my problems and advised me to solve them by myself. I tried, tried and fuck

हंसते-हंसते

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चलते चलते कब राह खत्म हो  गई,    और हंसते-हंसते कब आंख भर गई,                     पता ही न चला। अभी-अभी तो उनसे हंसना सीखा था,         अभी-अभी तो उनसे प्यार करना सीखा था,                                            अभी-अभी तो उनके सपनों में खोना सीखा था,                          लेकिन अब कुछ चुभ सा गया है  इन आंखों मे,                                   वर्ना अभी-अभी तो इन आंखों ने उनसे नजरें मिलाना सीखा था।   चलते चलते कब राह खत्म हो  गई, और हंसते-हंसते कब आंख भर गई,        पता ही न चला।   कुछ सपने अधूरे  से रह गये थे,                          कुछ  लब्ज अनकहे से रह गये थे,             मगर अब मेरा दिल टूट सा गया है,   और उन सपनों और लब्जो को भूल सा गया है ।                          अब  पीछे मुड़ कर देखने को जीं नहीं करता,                                            ना ही उनसे फिर दिल लगाने को मन करता हैं।                                         चलते चलते कब राह खत्म हो  गई,                                         और हंसते-हंसते कब आंख भर गई,

उनकी डायरी के कुछ पन्ने

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  मैं उनकीं डायरी के कुछ पन्ने पढ़े जा रहा था| और इस बात से अनजान था कि मैं यूँ पढ़ते हुए उनकी निज़ी ज़िंदगी को अपने माँ बापू के सामने उज़ागर कर रहा था| जब भी वो पल याद आते है तो खुद को कोसता रहता हू| वो भी मेरी तरह अपनी डायरी मे कुछ लिखा करती थी, उनकी कुछ परेशानिया , रोज़मर्रा की तकलीफे, और वैवाहिक ज़ीवन से जुड़े ज़ुल्म| मैं उस समय उनके दर्द को समझ नही पा रहा था| पर आज सब कुछ समझ मे तो आ गया है लेकिन इतनी हिम्मत नही जुटा पाया की उनसे माफी माँग सकु| सोचता हू की एक दिन उनकी तकलीफे दूर करूँगा फिर उनसे अपने किए की माफी भी माँग लूँगा| लेकिन उनके दुख तो बढ़ते चले गये है और मैं उनकी कभी मदद नही कर पाया| मैं उस समय तो ना समझ था , लेकिन आज जानते हुए भी कुछ नही कर पा रहा हू, या तो मैं कायर हू या फिर मैं उनके दुखों को नकार रहा हू| आज जब भी घर जाता हू तो उनकी कोई लिखी हुई डायरी ढूंढता रहता हू, इसलिए नही की मैं उन्हे पढ़ना चाहता हूँ बल्कि इसलिए की देखना चाहता हू उनके दुख और कितने पन्नों और कितनी डायरियो मे समाएँगे| मगर मुझें कुछ नही मिलता है,,यहा तक की उनका लिखा हुवा एक पन्ना भी नही मिल
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