एक चेहरा
एक चेहरा मुझे रोज़ दिखता है कभी सपनो मे तो कभी अपनो मे कभी अपनी डाइयरी के पन्नो मे तो कभी इन लिखी हुई शायरियो मे एक चेहरा मुझे रोज़ दिखता है| मोहब्बत को दफ़नाकर, मासूमियत दिखाता है एक बार नही बार बार रुला कर, हमदर्दी दिखाता है कुछ मीठी यादो के साथ ढेर सा गम दे जाता है यह चेहरा कुछ ख़ास सा है इसमे, वरना आज तक क्यूँ याद आता है यह चेहरा, एक चेहरा मुझे रोज़ दिखता है, कभी सपनो मे तो कभी अपनो मे|